Friday 22 July 2016

कहानी : देश द्रोह

देश द्रोह

गौ माता को बिजली के खम्भे से सर खुजलाते देख मेरा दोस्त मुझ से पूछा अरे इसे कहीं बिजली तो नहीं लग गई ?”
मैंने कहा अगर बिजली लगी तो समझ लो हिन्दुस्तान से बिजली को पकिस्तान भेज दिया जाएगा और जो बचेंगा उसे गले में रस्सी बाँध कर पेड़ से लटका दिया जाएगा इसलिए बिजली की हिम्मत नहीं है कि गौ माता को कुछ कर सके |
उसने फ़ौरन बात काटते हुए कहा और अगर बिजली सच में लग गई हो तो?”
तो समझ लो अगले ही पल हिंदुस्तान के हर चैनल पे ख़बर नसर होगी कि बिजली हिंदुस्तान का सब से बड़ा देश द्रोह, देखिए कैसे?’ और फिर बहस होगी, कुछ विडियो क्लिप देखाए जांएगे, कुछ व्हाट्सअप पे वायरल होगा, सियासत में हलचल होगी, नेताओं का उस जगह दौरा होगा, भीड़ को वो ख़िताब करेंगे और कहा जाएगा कि दोस्तों मुझे पता है ये किस की चाल है, आप मेरा साथ दीजिये हम दुश्मनों के ख़िलाफ़ जंग छेड़ेंगे, इस का बदला दुश्मनों और बिजली दोनों से ले कर रहेंगे......,  मैं कहते हुए थोड़ी देर साँस लेने के लिए अपनी बात को आधी अधूरी छोड़ कर एक लम्बी साँस ली और फिर बात को जारी रखा |
....और सब से पहले तो गौ रक्षक दल आएगी, जिसके आते ही पुलिस अपना बोरिया बिस्तर समेट कर दूर खड़ी जिप्सी में जा बैठेगी और वहीँ बैठे बैठे तमाशा देखेगी | इन सब बहस के बीच एक कमिटी का गठन होगा फिर आखिर में बिजली की सुप्रीम कोर्ट में पेशी होगी और फ़ैसला सुनाया जाएगा, जो मैं नहीं बताऊंगा वरना मेरी पेशी हो जाएगी कोर्ट में |”
इस बीच बात करते करते हम दोनों दोस्त उस बिजली के खम्भे के क़रीब पहुँच गए जहाँ गाय बिजली के खम्भे को छोड़ खम्भे को सहारा देने वाले तार से अपना सर खुजलाने लगी थी | ये देख मेरा दोस्त दौड़ कर गाय के क़रीब गया और उसे भगाने लगा ताकि ऐसे न हो कि बिजली का झटका लग जाए लेकिन हुआ कुछ और, गाय उल्टा उस पे दौड़ी और सर की खुजली उस को पटख कर उतार ली | चोट खाए, गुस्साए दोस्त ने बराबर में पड़े डंडे से गाय की धुनाई करनी शुरू कर दी, जब तक मैं उसे रोकता तब तक दो तीन डंडे बेचारी गाय को पड़ चुके थे | लेकिन अगले ही पल हम देखते हैं कि तीन चार नौजवान सर पे जय श्री राम का पट्टा बांधे, हाथ में डंडा लिए हमारी तरफ दौड़े आ रहे हैं, बस क्या था अब हमारी खैर न थी इसके सिवा के यहाँ से भाग निकलें, दोस्त का हाथ पकड़ा और भागना शुरू किया | पीछे पीछे गौरक्षक दल और आगे आगे हम दोनों ........ भागते रहे, भागते रहे... |

असरारुल हक़ जीलानी

3 जून 2016     

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