Tuesday 22 July 2014

खेत की पुकार

खेत की पुकार 

काले काले जले भुने से 
कफ़न में लिपटी थी उसकी लाश 
खोला हटा कर देखा कफ़न को 
तो साँस लेती थी उसकी लाश 
क़रीब बैठा, पूछा 
अभी तो पिछले फ़सल में तुम 
जागते थे पीले फूलों के साथ 
गन्दुम की लहलहाती 
झुरमुट सी बालियों के साथ 
और आज किसने दफ़ना दिया 
तुम्हारे हँसते गाते तन को 
जलते धुँआ में साँस लेता खेत 
सूखे आँसुओं का क़तरा बहा कर कहने लगा
वो नादान दहकाँ  
ज़रख़ेज़ी का नुस्ख़ा समझ कर 
जला दिया मेरे जिस्म के बालों को 

गन्दुम - गेंहू , दहकाँ - किसान , ज़रख़ेज़ी - उर्वरकता

KHET KI PUKAR

Kale kale jale bhune se
Kafan main lipti thi uski lash
Khola hata kar dekha kafan ko
to sans leti thi uski lash
Qareeb baitha puchha
Abhi to pichhle fasal main tum
Jagte the peele phoolon ke sath
Gandum ki lahlahati 
jhurmut si baliyon ke sath
Aur aaj kisne dafana diya 
Tumhare hanste gate tan ko
Jalte dhuwan main sans leta khet 
Sukhe aansuon ka qatara baha kar kahne laga
Wo nadan dahkan 
zarkhezi ka nuskha samajh kar 
Jala diya mere jism ke balo ko

Meaning 
Gandum - Wheat, Dahkan - farmer , Zarkhezi - fertilizer

Thursday 10 July 2014

A story : Catch me if you can

                          कैच मी इफ यू कैन 
                                                               

नये कपड़े, नई जगह, नये लोग कितने अच्छे लगते हैं ना और ऐसा नहीं है कि पुरानी चीज़ों से मोहब्बत नहीं होती है, होती है मगर ऐसे जैसे अपने वतन की मिट्टी से होती है।  मैं भी ज़िन्दगी की दौड़ में एक चौराहे से आगे बढ़ कर कॉलेज में दाख़िला ले ली थी जो मेरे लिए एक अच्छी ख़बर थी जहाँ सब कुछ नया सा था, दोस्त, जगह, माहौल और मौसम भी। मैं ने पिछले पुराने पलों को  मौसम-ए -खिजा का इंतज़ार किये बग़ैर उसके यादों के सारे पत्ते काट गिरा दिये थे लेकिन इस लिए नहीं कि अपनी ज़िन्दगी के दरख़्त पे पत्ते उगाउंगी, ये तो सोची भी नहीं थी। बस ये था कि रगो को  चूसने वाले सारे पल मैं छोड़ आई थी।
इसी नए मौसम में एक नया पेड़ भी उगा, पत्ते भी आए और खुशबू  अब तक तैरती है, जो मेरा सब कुछ है। अगर लम्हे को कोई फ्रेम करने वाला हुनरमंद होता तो मैं उस से कहती कि एक बड़े से फ्रेम में उस लम्हे को फ्रेम कर दो जब वो मुझे पहली मरतबा  देखा था और फिर कुछ ही पलों में वो मेरी आँखों से यूँ ओझल हो गया जैसे किसी फिल्म का प्रोमो हो, जैसे उस को पर लगे हों सो फ़ौरन उड़ कर बादलों में जा छिपा  हो या किसी तारे को मना कर लेन गया हो , मेरे लिए। और उस फ्रेम को कमरे के सामने वाली दीवार पे लगाती।
हर स्टूडेंट के ज़ुबान पे रहने वाला कॉलेज का टी प्वांट जहाँ पे चाय तो मिलती ही थी साथ ही साथ दिल भी मिलते थे। उसी प्वांट से उस रोज़ मैं गुज़र रही थी तो अंजाम ने मुझे देखा था जैसा वो कहता है, दौड़ कर मेरे क़रीब आया और बग़ैर किसी की मौजूदगी की परवाह किये मुझ से हाय किया, बोला मैं  अंजाम और एक जुमला  इंग्लिश में कहा " कैच मी इफ यू कैन " । उसे मैं ठीक से देख भी नहीं पायी थी कि वो दौड़ लगाई और मुझ से इतना दूर जाकर खड़ा हो गया कि सिर्फ मैं देख सकती थी कि वो खड़ा है। एक मरतबा मेरी तरफ देखा, हाथ हिलाया और गायब। मैं सोची होगा शायद कोई पुराना जानने वाला। मैं क्यूँ उसको पकड़ू, क्यों उसे जानूँ।होगा कोई सरफिरा। मगर फिर भी उस पल का एक कार्बन कॉपी मेरे दिल पे उतर गया था।
दूसरी मुलाकात ऐसी थी जैसे दूर खड़ा कोई साया मुझे चाह भी रहा हो और चिढ़ा भी रहा हो इस तरह कि कह रहा हो पकड़ लो अगर पकड़ सकती हो और ग़ौर से देख भी रहा हो। इस से पहले कि मैं उसे देख कर मुँह फेर लेती उस ने कहा " कैच मी इफ यू कैन " और फिर कैंटीन की भीड़ में खो गया था वो चेहरा।  मैं क्यों उस के पीछे जाती ? क्यों मैं भीड़ को तहस नहस करती हुई उसे पकड़ती ? वो मेरा क्या लगता था।  मगर हाँ पिछली मुलाकात का वो जो कार्बन कॉपी था उसे एक और साथी मिल गया था दूसरी यादगार की शकल में।  मैं उसके इस पागलपंती को झटक कर चाय ली और अपनी दोस्त के साथ क्लास करने चली गई।
तीसरी मुलाकात तो एक अजीब इत्तेफ़ाक़ था। लाइब्रेरी में एक किताब ढूंढ़ रही थी "फेमिनिज्म एण्ड हिस्ट्री " जॉन वालेच की, उसी वक़्त मुझ से कोई टकराया , सॉरी के आर तक भी नहीं पहुँचा होगा कि जब वो मुझे देखा तो कैच मी इफ यू कैन कह कर यूँ भागा जैसे कोई पुलिस उसे गिरफ्तार कर लेगी । मैं उस वक़्त ख़ूब हँसी और उसके हाथों से गिरी किताब को दुपट्टे से साफ की और उसकी जगह पे रख दी। ये वो मुलाकात थी जब वो, जिसे अजनबी कहती थी अपना सा लगने लगा था , जिसके दूर होने पर भी क़रीब जाकर कम  से कम उसका नाम पूछ लेना चाहती थी। मैं उस पल अपनी सारी बेपरवाही से आगे आकर उसके बारे में सोचने लगी थी और ये सोची कि अगले मरतबा उससे नाम पूछूँगी। मगर ऐसा नहीं हुआ क्योंकि वो जब भी मुझे देखता दूर से ही कैच मी इफ यू कैन कह कर भाग जाता। और उस इत्तेफ़ाक़ के बाद कई बार ऐसा हुआ। मैंने तो एक बार उसे इशारे से बुलाई भी थी मगर वो सच में सरफिरा था।
एक दिन मेरी झोली में इत्तेफ़ाक़ आया, देखी अन्जाम चुपचाप सर झुकाये किसी सोच में चला जा रहा है । मैं अपनी दोस्त की ओट लेकर उसके क़रीब पहुँची और फ़ौरन उस का  हाथ पकड़ ली और ऐसे चिल्लाई जैसे मैंने क़िला फतह कर ली हो। ख़ुशी के मारे सीना फूल गया था, होटों पे मुस्कानों ने डेरा जमा लिया था और मेरी आँखों में इतनी सारी  ख़ुशी घुस आई थी जिसके लिए जगह बनाने को आँखें बड़ी करनी पड़ी। वो मेरी तरफ देखा और मुस्कुरा दिया। मैं पूछी " तुम क्यों कैच मी इफ यू कैन कह कर भाग जाते थे। वो एक मरतबा नज़र नीचे किया और फिर नज़रें मिला कर कहने लगा " यही मेरे परपोज़ करने का अंदाज़ है, मोहब्बत को हासिल करने का तरीका है। मैंने जब तुम को पहली मरतबा देखा था मुझे तुम से उसी वक़्त मोहब्बत हो गयी थी।"

                                                                                    असरारुल हक़ जीलानी




        

Saturday 5 July 2014

   ग़ज़ल 

उठी  है  आवाज़ तो  रहेगी देर तलक 
रात रोशन  हो  जाएगी  सवेर  तलक 

जब  जल  जंगल ज़मीन चिल्ला उठेगी 
मरकज़ भी हिल जाएगी कुछ देर तलक 

आवाज़ हिमालय की निकल आएगी  
बस  हमें इंतज़ार  है  कुछ  देर तलक 

हक़ की  आवाज़ कब खामोश बैठी है 
उठेगी तो  झुक  जाएंगे दिलेर तलक

जो लफ्ज़ हैं धुँआ धुँआ सी चोटियों पे 
बसी है ज़िन्दगी बादलों के घेर तलक  

                                                                 असरारुल हक़ जीलानी 


ये ग़ज़ल मैंने तब लिखी थी जब मैं उत्तराखण्ड आपदा में  उत्तरकाशी गया था वहाँ का नीड असेसमेंट करने। 


Uthi hai aawaaz to rahegi der talak
Raat roshan ho  jayegi sawer talak

Jab jal  jangal  zameen chilla uthegi
Markaz bhi hil jayegi kuch der talak

Awaaz  Himalaya  ki  niakal ayegi 
Bas hamen intezar hai kuch der talak 

Haq ki awaaz kab khamosh baithi hai
Uthegi  to jhuk  jayenge  diler  talak

Jo lafz hain dhuan dhuan si chotiyon pe
Basi hai  zaindagi badalo kr gher talak




Toward an Additional Social Order

This refers to the article, ‘of lions and dogs’ (IE, September 19). The author argued to inform misunderstood stand of Swami Vivekanand...