Friday 9 January 2015

क्यों ?

क्यों मुझे यहाँ इंसानो में छोड़ दिया है
भीड़ के बयबानो में छोड़ दिया है
बहुत रंजिशें हैं
बहुत सोज़ ओ गुदाज़ है
बहुत लोग हैं फिर भी नहीं हैं
न जाने क्या है यहाँ
कि दम घुटता है मेरा
लोगों ने मरने वालो पे रोना छोड़ दिया है
क्यों मुझे यहाँ इंसानो में छोड़ दिया है
आओ न ऐ फिज़ाओ की महक
मुझे उड़ा कर ले चल उफ़क़ के उस पार
और दिखा दे अँधेरी रात की चाँदनी
मुझे फलक का ज़र्रा ही बना दे
आओ न ऐ लटकते तारों का छुरमुट
ले चल मुझे यहाँ से
मैं भी टंग जाऊंगा तुम्हारी तरह
अब लोगों ने आसमां  देखना छोड़ दिया है
क्यों मुझे यहाँ इंसानो में छोड़ दिया हैं
आओ न रूह  ए मोहब्बत
यहाँ सब खाली है
खोखला है दिल ओ जां
मोहब्बत को समझने का माद्दा बचा नहीं है
कुछ तो रहम करो
कुछ तो करम करो
बस क़ल्ब इ इन्सां में बस जाओ
लोगो ने मोहब्बत समझना छोड़ दिया है
क्यों मुझे यहाँ इंसानो में छोड़ दिया हैं

असरारुल हक़ जीलानी 

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