Saturday 17 January 2015

मेरा चाँद मुस्कुराने लगा है


तेरी याद का एक टुकड़ा 
पड़ा रहता है मेरी जेब में 
मेरी सूखी नज़्मों के साथ 
जब भी थक जाता हूँ 
या भूख परेशान करती है सफर में 
तेरी याद के टुकड़े को 
टुकड़ो टुकड़ो में खाता हूँ 
और तेरी ख़ुश्बू में डूबे पानी से 
भिंगो लेता हूँ अपने होंट 
कि प्यास जाती रहे 

अब उम्मीद का सूरज सर उठाने लगा है 
तेरा सुर्ख़ लिबास सुबह की लालिमा हो जैसे 
उजाले की निशानी है चार सू 
वो घनेरे काले बादल के पीछे से 
मेरा चाँद मुस्कुराने लगा है  

असरारुल हक जीलानी
तारीख : 17 जनवरी 2015 

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