Thursday 7 November 2013

                    अनकही कहानी 

असरारुल हक़ जीलानी 

हर रोज़ की तरह आज वो अपनी दोस्तों कि बातें नहीं सुनाई, कक्षा में हुई किसी पाठ का चर्चा और अपनी ख़ुशी, परेशानी या कोई और कहानी नहीं सुना रही थी बल्कि चुप चाप ख़ामोशी से चलती चली जा रही थी यु लग रहा हो जैसे उसके साथ में  हूँ ही नहीं। उसने आज पिट्टू कि बदमाशी कि शिकायत भी नहीं कि मुझ से और न ही उसने लंच कि तारीफ की। वो मेरी बातूनी बेटी कहा चली गई जो एक पल भी नहीं चुप रहने वाली थी जिसकी कहानी कभी खत्म ही नहीं होती थी।स्कूल बस से उतरने के बाद वो  मेरी तरफ प्यार से लपकी भी नहीं और न ही वो  अपना बैग मेरी तरफ बढ़ायी।  मैं भी चुप चाप उसके पीछे पीछे चलती रही यहाँ तक के राजू कि दुकान भी गुज़र गई जहाँ वो अक्सर लेज़ या चिप्स  खरीद देने कि ज़िद्द किया करती थी और वो गली भी कब का पीछे छूट चूका था जहाँ वो कुत्तों को कुछ चिप्स खिलाया  करती थी और पूछती थी मम्मी ये कुत्ते रात को कहा सोते हैं ? इनके  घर नहीं होते  क्या? मैं भी आज घर के काम से थक चुकी थी इसलिए सोचा चलो अच्छा है नहीं बोल रही कुछ तो ज़यादा सही है। लेकिन मुझे उसका चुप रहना खलने लगा था क्योंकि जो काम  रोज़ हो और अचानक एक दिन न हो तो कुछ कमी सी लगने लगती है। फिर भी मैं ने कोई पहल नहीं कि यहाँ तक हम दोनों घर पहुच चुके थे।  

फिर आगे हम  दोनों कि शुरू होने वाली थी अपनी अपनी आप बीती सुनाने की  और बैठ कर एक साथ सीरियल देखते  हुए चाय का लुत्फ़ लेने का लेकिन वो नहीं दिख रही थी कहीं भी, न ही कमरे में  न ही टीवी के सामने। फिर थोड़ी देर बाद वो बाथरूम से निकली और मुझ से बग़ैर नज़र मिलाए बालकनी  में जा कर बैठ गई।  मैं ने सोचा  शायद थक गयी होगी या मन अच्छा नहीं होगा या शायद क्लास मैं  किसी ने कुछ कह दिया होगा। अगर ऐसा था फिर भी मुझे उसके करीब जाना चाहिए था और पूछना चाहिए था, उसके सर को गोद लेकर प्यार से चूमना चाहिए था जो मैंने नहीं किया।  फिर वक़्त आया पिता जी घर आते ही उससे चिपट कर चॉकलेट मांगने की लेकिन आज वो भी नहीं हुआ। गुड़िया  के पिताजी घर आए चुके थे और मैं चाय भी लाकर उनको दे चुकी थी लेकिन कुछ अगर नहीं हुआ था तो वो था मेरे घर की गोरैया का चहकना। यु लग रहा था जैसे घर कि रौनक़ ही ख़तम हो गयी हो, यहाँ कोई रहता ही नहीं हो सिर्फ एक गुड़िया के न चहचहाने से।  उसके पिताजी के पूछने के कारण जब मैं उसे उसके कमरे में  ढूंढने गयी तो उसे  नहीं पाया और उसे पाया तो उसी बालकनी में बैठे हुए जहाँ वो दोपहर को बैठी थी। यानि वो तब से यही बैठी है और मै उसकी ख़बर भी नहीं ली उस वक़्त मुझे अहसास हुआ कि  मैं ने ग़लती कि है उसकी आज कि अनकही कहानी को नज़रअंदाज़ करके।
उसके पिताजी प्यार से उसके सर पे हाथ रखते हुए पूछा ''बेटा क्या हुआ है तुम्हें ? तुम क्यों चुप चाप बैठी हो पापा से चॉकलेट नहीं माँगोगी?''
''पापा स्कूल के  बस ड्राईवर ने मुझसे ………....... । '' इतना कह कर वो रोती हुई  अपने कमरे कि तरफ चली गई और हम  दोनों अवाक् खड़े एक दूसरे को देखते रह गए। 




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