आओ न मेरे क़ातिल
आओ न मेरे क़ातिल
मेरे काफिर आओ न
आदत ख़ामोशी की मन को लगी थी
आदत ख़ामोशी की मन को लगी थी
चोट किसी शोर की दिल को लगी है
किसी भीड़ की तूफान से जो टकड़ा गया हूँ
अब दिल की वादी बिखर गयी है
टूटे हुए घर की दीवार दिखानी है
आओ न मेरे क़ातिल
मेरे काफिर आओ न
मैं कहता हूँ कुछ भी तो नहीं हुआ है अभी
अभी रगों में तेरी दौड़ तो बाक़ी है
अभी दिल में तेरी आस बाक़ी है
अभी साँस बाक़ी है
बहुत सी है बात कहनी है
आओ न मेरे क़ातिल
मेरे काफिर आओ न
आना उसी झील के किनारे पे
उसी बोलती गूंजती सी वादी में
जहाँ नाचती थी तितलियाँ तेरी आवाज़ पे
मेरी दुनिया थी तेरी आँखों में
अभी और भी गुज़ारिश करनी है
आओ न मेरे क़ातिल
मेरे काफिर आओ न
असरारुल हक़ जीलानी
तारीख : ३ दिसम्बर २०१४
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