मुम्बई की शाख़ों
से टूटा तो दिल्ली के पुराने दरख़्तों पे पनाह ली, मगर सर पे छत मिल जाना ही काफ़ी
नहीं होता, गर्मी ने जब ख़्यालों को उबालना शुरू किया तो
सुकून की तलाश में हिमालय की तराई में आकर क़याम किया, लेकिन ऐसा नहीं हुआ कि यहाँ
आकर सुकून की तलाश ख़त्म हो गई हो, हाँ मगर उन झमेलों से दूर, कुछ बेहतर है | नेपाल से नज़दीक मगर हिन्दुस्तान की सरज़मीन पे
बसा है ये छोटा सा गाँव, जहाँ से कुछ दूरी पे श्रावस्ती है, वो जगह जहाँ महात्मा
बुद्ध अपनी ज़िन्दगी के दो साल बिताए थे | गाँव की आबादी मिली जुली है, हिन्दू,
मुस्लिम और बोद्ध, तीनों मज़हब के लोग एक ही हवा में साँस लेते हैं | अब तक हवा का
बँटवारा तो नहीं हुआ है मगर ज़मीन थोड़ी बंटी हुई दिखी कि गाँव के जुनूब और मग़रिब
जानिब मुस्लिम बसे हैं और बाक़ी के दो सिम्त में हिन्दू और बोद्ध रहते हैं लेकिन
दरगाह पे आपको तिलक और टोपी वालों में फ़र्क़ नज़र नहीं आएगा |
मैं गुप्ता जी के
दालान पे बैठा खाने का इंतज़ार कर रहा था कि तभी एक नौजवान टोपी पहने, चेहरे पे
हल्की हल्की दाढ़ी और घुटनों तक लम्बा कुरता पहने मेरे क़रीब आकर बोला “राम-राम जी” और
गुप्ता जी के घर के अन्दर दाख़िल हो गया | मैंने जवाब में राम-राम बड़ी आसानी और ख़ुश
मिज़ाजी से बोल तो दिया था मगर ज़हन से निकल कर अजीबों ग़रीब क़िस्म के सवालात दिमाग पे
हमला करने लगे लेकिन मेरा दिमाग़ भी इतना कमज़ोर न था कि उन सवालों का बेहतर जवाब न
दे सके और इस तरह दिमाग़ और ज़हन के बीच होने वाली जंग की बला टली | इस हमले से थोड़ा
थका हुआ दिमाग़ खाने के बर्तन पे आकर आराम करने ही वाला था कि दालान से नजर आ रही
सामने वाली दीवार पे लिखा एक जुमला “गो हत्यारों को फाँसी दो” ने फिर से जंग का
बिगुल बजा दिया था | इस बार मेरा दिमाग़ थोड़ा कमज़ोर पड़ने लगा था कि वो नौजवान फिर
से मेरे क़रीब आकार रुका, मुझ से मेरा नाम पूछा, नाम सुन कर उस ने माफ़ी की
दरख्वास्त करते हुए सलाम किया | मैं सलाम का जवाब देते हुए कहा “राम राम कहो या
रहीम रहीम, मेरे लिए दोनों बराबर है” | ये सुन कर उसने मेरा हाथ अपनों हाथों में
लिया पहले दोनों आँखों से फिर होठों से चूमने लगा जिस से साफ पता चलता था की गाँव
वाले पीर बाबा का मुरीद होगा |
मेरे क़रीब बैठा
एक शख्स मेरी तरफ़ देखा अपनी एक अंगुली दिमाग़ तक ले जा कर कहा “ये थोड़ा खिसका हुआ
है” |
इस की बात सुन कर
और नौजवान की मुहब्बत को देखकर, मन ही मन ये सोचने लगा कि काश दुनिया का हर इंसान
इस नौजवान की तरह खिसका होता तो बेहतर होता कि मज़हब के नाम पे कोई लड़ाई न हो |