दिन का मुंह काला
हो गया है
जब से मेरा चाँद
खो गया है
ये कहकशां ये
तारे ये आसमां
उसके जाते ही सब
सो गया है
काग़ज़ पे नंगे पा
चलते चलते
क़लम को मेरे घाव हो गया है
मैं था जो पहले
हूँ अब भी वही
इस ज़माने को क्या
हो गया है
शगल पूछते क्या
हो असरार की
दिल से जां तक वीरां हो गया है
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