ग़ज़ल
तुझ में बनता कोई मुस्लिम कोई हिन्दू है
मगर क्या आदमी बनने की जुस्तजू है
क़ातिल कहे बिस्मिल दामन को थाम लो
उस को भी इल्म ये क्या चीज़ आबरू है
उस की ये आरज़ू हालात ज़रा ठीक हो
मुझे मगर हालात से लड़ने की आरज़ू है
वाएज़ कहे है आबरू
है बुर्क़ा लपेटना
चिलमन उठा कर देख मिट्टी सी आबरू है
बरहना फिरने से ही तरक्क़ी
नहीं होती
मयार ए ज़हन तेरा तरक्क़ी की आबरू है
जुस्तजू - चाहत, ख्वाहिश, बिस्मिल - जिसे क़त्ल किया जाए,
इल्म - ज्ञान, वाएज़ - उपदेशक,
चिलमन - पर्दा बरहना - नंगा
इल्म - ज्ञान, वाएज़ - उपदेशक,
चिलमन - पर्दा बरहना - नंगा
غزل
تجھ میں بنتا کوئی
مسلم کوئی ہندو ہے
مگر کیا آدمی بننے کی جستجو ہے
قاتل کہے ہے بسمل
دامن کو تھام لو
اسکو بھی علم
یہ
کیا چیز آبرو ہے
اسکی یہ آرزو حالات ذرا ٹھیک ہو
مجھے مگر حالات سے
لڑنے کی آرزو ہے
واعظ کہے ہے آبرو ہے
برقہ لپیٹنا
چلمن اٹھا کر دیکھ مٹی سی آرزو ہے
برہنہ پھرنے سے ہی
ترقی نہیں ہوتی
معیار ذہن تیرا ترقی کی آبرو ہے
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