तुम्हारी तस्वीर
हरे हरे ख्वाबों को तराश कर
देता हूँ शकल पत्तों का
गीले गीले अहसास के क़तरों से
ख्यालों की टहनियों पे चिपकाता हूँ उन पत्तों को
फिर तसव्वुर के तने से जोड़ देता हु उनको
तो बन जाती है तुम्हारी तस्वीर
असरारुल हक जीलानी
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