मुहब्बत के मारे या दहशत
के मारे
भटकते हैं सब हिफ़ाज़त के
मारे
मुहब्बत है महंगी है
सस्ती अदावत
जलती है बस्ती अदावत के
मारे
कुर्सी पे ज़ालिम हैं क़ैद
आदिल
होती है गड़बड़ सियासत के
मारे
समझे न मज़हब उठाए हैं
खंज़र
मरते हैं इन्सा जिहालत के
मारे
मुहब्बत न मुश्किल न आसान
ही है
जीते हैं मरते मुहब्बत के
मारे
असरार