तेरी याद का एक टुकड़ा
पड़ा रहता है मेरी जेब में
मेरी सूखी नज़्मों के साथ
जब भी थक जाता हूँ
या भूख परेशान करती है सफर में
तेरी याद के टुकड़े को
टुकड़ो टुकड़ो में खाता हूँ
और तेरी ख़ुश्बू में डूबे पानी से
भिंगो लेता हूँ अपने होंट
कि प्यास जाती रहे
अब उम्मीद का सूरज सर उठाने लगा है
तेरा सुर्ख़ लिबास सुबह की लालिमा हो जैसे
उजाले की निशानी है चार सू
वो घनेरे काले बादल के पीछे से
मेरा चाँद मुस्कुराने लगा है
असरारुल हक जीलानी
तारीख : 17 जनवरी 2015
No comments:
Post a Comment