सुनो भी देखो भी कहो भी
असरारुल हक़ जीलानी
देखा नहीं तुमने जो मैंने कहा, सुना नहीं तुमने जो मैंने किया। अक्सर लोग सुनते हैं तो देखते नहीं और अगर देखते हैं तो सुनते नहीं। शब्दो को सिर्फ सुना ही नहीं जाता बल्कि उसे देखा भी और तोला भी जाता है, चलती फिरती, दौड़ती -भागती, नाचती - गाती हिंसा और अहिंसा कि नगरी को सिर्फ देखा नहीं जाता सुना भी जाता है। दीवारों पे लिखे शब्दो को सिर्फ देखा या पढ़ा नहीं जाता बल्कि सुना भी जाता है क्योंकि दीवारों को सिर्फ कान ही नहीं होते बल्कि ज़ुबान भी होता है।
शब्दो के बारे मैं आपको किस ने कह दिया है कि ये सिर्फ लिखा होता और इसे ज़ुबान या हरकत नहीं होती। दरअसल हमने अपने कानो को ज़ुबानों को कह रखा है कि वही सुनो और वही देखो जो सारी दुनिया देखती है या जो हम देखना चाहते है,और वही कहो जो सब कहते हैं । हमने वो देखा ही नहीं जो दुनिया कि चलती फिरती बोलती आवाज़ दिखाना चाहती है और हमने वो सुना ही नहीं जो किरदार कि कठपुतली दुनिया के रंगमंच पे कर रहे हैं। आओ तो सही ज़रा सुनें भी कहें और देखें भी।
mashallah.....zindagi asli bolti zuban....
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