ग़ज़ल
असरारुल हक़ जीलानी
अल्फ़ाज़ के मायने :
अशआर- कविताएँ, शेर का बहुवचन, नज़म (नज़्म)- कविता, साक़ी- शराब पिलाने वाला/ वाली,
अलम- 1. झंडा 2. दुःख , ग़म; असरार- छुपी हुई बात, राज़ ; अफ़शाँ - ज़ाहिर करना या होना
संग ए अशआर मेरी चाहत मेरे क़लम से निकलेगी
जो भी निकलेगी थम थम के नज़म से निकलेगी
तुम्हे जितना क़त्ल करना है कर लो साक़ी
ख़ून मेरे गले से नहीं मेरे क़लम से निकलेगी
तूने बहुत लगाएं हैं ज़बाँ पे ताले लगाओ
मेरे हुक़ूक़ की आवाज़ मेरे अलम से निकलेगी
मेरे पैग़ाम का जवाब न दोगी कब तक ये
बेताब चाहत का रंज दर्द ओ अलम से निकलेगी
काट कर नज़्मों से किस तरह अलग कर दूँ उसको
जो दिल ही से न निकले ख़ाक नज़्म से निकलेगी
चेहरा छुपा के भी दिखा के भी चलते हैं लोग
वो जो हकीकत निकलेगी बड़ी शरम से निकलेगी
हालत ए असरार पुर-असरार हो गया है अब
ज़माने पे जो अफ़शाँ होगी वो नज़म से निकलेगी
असरारुल हक़ जीलानी
अल्फ़ाज़ के मायने :
अशआर- कविताएँ, शेर का बहुवचन, नज़म (नज़्म)- कविता, साक़ी- शराब पिलाने वाला/ वाली,
अलम- 1. झंडा 2. दुःख , ग़म; असरार- छुपी हुई बात, राज़ ; अफ़शाँ - ज़ाहिर करना या होना