मेरी माँ
अपने अस्तित्व को सुरक्षित लेकर
जब शाम को घर आती है मेरी माँ
मेरी नन्ही सी जान को सीने से
भींच लेती है मेरी माँ
वो चली जाती है छोड़ कर लेकिन
रोटी कि अस्तित्व घर लाती है मेरी माँ
चली जाती है ईंट को ईंट से जोड़ने
फिर ऊँचे मकान को अस्तित्व देती है मेरी माँ
सर पे भविष्य के मकान को लिए
अस्तित्व को बालू में पीस लेती है मेरी माँ
फिर रात को मेरी बहन के रोने पे
कितने आँसुओ को पी लेती है मेरी माँ
अब स्वयं के प्रमाण में माँ का न होना
मेरे आत्मा को रुलाती है मेरी माँ
बेटा बसा है शिक्षा में अस्तित्व तेरा
हर रोज़ ये कह जाती थी मेरी माँ